क्या चीन का समर्थन और भारत की उपेक्षा कर ओली नए नेपाल का निर्माण कर पाएँगे ?
काठमाडौं,
सेना सशस्त्र प्रहरी और प्रहरियों को बैरेक से निकालकर, कर्फ्यू लगाकर जारी किए गए संविधान का भारत कैसे स्वागत करेगा ?
१७ सितम्बर को मित्र राष्ट्र भारत के प्रधानमंत्री के विशेष दूत के रूप में सुब्रह्मण्यम जयशंकर जी का नेपाल आगमन हुआ । उन्होंने भारतीय प्रधानमंत्री की धारणाओं को नेपाली नेताओं के सामने रखा । नेपाल के प्रधानमंत्री जी की अतिव्यस्तता (?) के कारण उन्होंने सबसे पहले केपी ओली जी से मुलाकात की । वैसे ओली जी के साथ की ही मुलाकात सही थी क्योंकि तथाकथित हमारे प्रधानमंत्री जी से मुलाकात की कोई खास वजह नजर नहीं आती क्योंकि उनके पास अपनी कोई बात रखने के लिए जुबान ही नहीं है । प्रचण्ड जी ने कहा यह भ्रमण के लिए सही समय नहीं है । किन्तु सच तो यह है कि यह वक्त ही सही था भारत के लिए अपनी बात रखने का । इस पूरे एक महीने के दौरान कम से कम नेपाल की आधी आबादी ने यह तो जाना कि वो कितने नेपाली हैं और कितने मधेशी । जिस राष्ट्र के नाम से उनकी पहचान है वह उसे कितना स्थान दे रहा है ? यह है हमारे देश की मानवता कि घरों में मातमी सन्नाटा है और उस मातम का मजाक बनाते हुए दीपावली की तैयारी जोर शोर से हो रही है । क्या यह संविधान उन डेढ करोड़ आबादी के लिए नहीं है जो पिछले एक महीने से अपने अधिकारों को सम्बोधित करने के लिए आन्दोलनरत है ?
भारत के विशेष दूत श्री जयशंकर जी ने कुछ प्रश्न रखे नेपाल के कर्णधारों के समक्ष, मसलन: सेना सशस्त्र प्रहरी और प्रहरियों को बैरेक से निकालकर, कर्फ्यू लगाकर जारी किए गए संविधान का भारत कैसे स्वागत करेगा ?
भारत के साथ जुड़े हुए सभी नेपाली जिला तनावग्रस्त है, क्या यह भारत को प्रभावित नहीं करेगा ऐसे में भारत किस तरह मौन दर्शक बन कर रह सकता है ?
आप सोच रहे हैं कि असोज तीन गते संविधान लागू कर के माहोल सामान्य होगा, क्या ऐसा होगा और अगर स्थिति अनियन्त्रित हुई तो आप कैसे सम्भालेंगे ? मधेशी और काठमान्डू के बीच की दूरी बढ रही है, ग्राउन्ड लेवल पर से सम्बोधन कर के लाया गया संविधान कितना स्थायी होगा ?
विश्व के समर्थन के बावजूद भारत अगर समर्थन नहीं करता तो इसका क्या अर्थ होगा ? इन प्रश्नों के जवाब में हमारे काबिल नेताओं ने किसी स्पष्ट नीति की चर्चा नहीं की बल्कि जवाब यह दिया कि हम समेट लेंगे ।
जी हाँ हमारे सत्ताधारी नेता ये जरुर कर सकते हैं, अगर संविधान लागू करने के लिए रक्त की धार बहाई जा सकती है तो उसे स्थायित्व प्रदान करने के लिए भी नरसंहार या बलि क्यों नहीं दी जा सकती है, इसमें मुश्किल क्या है ?
भारत ने स्पष्ट रूप में अपनी धारणा व्यक्त कर दी है कि अगर संविधान मधेश और अन्य असंतुष्ट पक्ष को लेकर नहीं लाया जाता है तो आगामी दिनों में दो देशों के बीच के सम्बन्धों पर असर पड़ सकता है । वहीं खुले रूप में मधेशी नेताओं को यह आश्वासन दिया कि उनकी माँग जायज है और भारत उनके साथ है । परोक्ष या अपरोक्ष रूप में यह आश्वासन मधेश के मनोबल को अवश्य बढाएगा । पहली दृष्टिकोण में यह अवश्य नजर आ रहा है कि नेपाल के मामले में भारत अपनी विदेश नीति में परिवर्तन करना चाह रही है । नेपाल की स्थिति भारत के लिए चिन्ता का विषय हो सकता है किन्तु उससे कहीं अधिक नेपाल के लिए चिन्तित विषय है । अगर भारत का प्रभाव कम हो रहा है तो स्पष्ट है कि चीन का प्रभाव बढ़ रहा है ।  नेपाली अब चीनीकरण में तब्दील हो रहे हैं किन्तु यह मानकर चलें कि एक को तुष्ट कर दूसरे को हाशिए पर रख नेपाल विकास की राह पर कभी नहीं बढ़ सकता । उसपर चीन जो अपने माल की ही तरह आज है और कल नहीं, वह नेपाल को बिना स्वार्थ कितना विकसित कर सकता है ? चीन का पूर्ण समर्थन और भारत की उपेक्षा कर क्या ओली महाशय नए नेपाल का निर्माण कर पाएँगे ? कई नेता यहाँ ऐसे हैं जिनपर भारत में मुकदमा दायर है क्या भारत रोष में आकर उनपर पुनर्विचार नहीं करेगा ? कई प्रबल प्रश्न हैं जिनका उत्तर समय देगा फिलहाल तो हम यह देख रहे हैं कि मधेशी मूल के राष्ट्रपति भी खिलौना बने हुए हैं । कल तक जो वर्ग मधेशियों को यह कहता था कि सर्वोच्च पद मधेशी को दिया गया है, अब और क्या चाहिए ? उन्हें यह जवाब जरुर मिल गया होगा कि मधेश को क्या चाहिए ? देश में राष्ट्रपति का अपमान किया जा रहा है । उनके ऊपर पाबन्दी लगा दी गई है कि वो मूक रहकर संविधान की घोषणा करें । अब देखना यह है कि जुबान होने के बावजूद बेजूवान घोषणा कैसी होती है ? बेचारे सशक्त नेता गच्छदार जी अपनी शक्ति नहीं दिखा पाए । मधेश और तराई जैसे शब्दों को जो संविधान में जगह नहीं दिला पाए वो भला मधेश को अधिकार क्या दिला सकते थे ।
भारतीय विदेश सचिव भारत लौट चुके हैं, किन्तु भारतीय प्रधानमंत्री के कड़े रुख को जता चुके हैं । वैसे यहाँ कई लोगों को उनके आगमन और वापसी में भारत की बेइज्जती नजर आ रही है किन्तु अच्छा होगा कि हम भारत की इज्जत से अधिक अपने अस्तित्व की चिन्ता करें । नेपाल से इज्जत के तमगे को लेकर भारत विकसित नहीं हो रहा बल्कि सहयोग की अपेक्षा नेपाल रखता है और विकास की राह पर चलना चाहता है । वैसे गाली देने वालों की संख्या कम नहीं है किन्तु आइना हमारे सामने है हमें उसका अवलोकन करना चाहिए ।
नेपालबाट प्रकाशित हुने हिन्दि म्याग्जिन हिमालिनी पोष्टमा श्वेता दिप्तीको लेख

भिडियोको लागि तल क्लिक गर्नुहोस् :


0 comments

Write Down Your Responses

Powered by Blogger.